यह सुनकर हिरण्यक चूहा बिल के भीतर से ही बोला - तुम कौन हो ॽ
कौवा बोला - मैं लघुपतनक नाम का कौआ हूँ ।
हिरण्यक हँसकर बोला - वाह ǃ तुम्हारे साथ हमारी मित्रता कैसी ॽ मैं तुम्हारा भोजन हूँ और तुम मेरे भोक्ता; भोक्ता और भोजन में कैसी मित्रता ।
कौवा बोला - भाई ǃ आपको खा लेने पर भी मेरा पेट तो पूरा भरेगा नहीं । पर हे साधो ǃ आपके जीवित रहने से तो चित्रग्रीव की तरह मैं भी कभी आपकी सहायता से जी सकूँगा ।
हिरण्यक बोला - तुम चंचल स्वभाव वाले हो और चंचल स्वभाव वाले के साथ मित्रता कभी नहीं करनी चाहिये ।
कहा भी है - बिल्ली‚ भैंसा‚ मेढा‚ कौवा और कायर पुरुष‚ इनका विश्वास करने से इनका हौसला बढ जाता है इसीलिये इनका कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिये ।
मार्जारो महिषो मेषः काकः कापुरुषस्तथा ।
विश्वासात्प्रभवन्त्येते विश्वासस्तत्र नोचितः ।।
लघुपतनक बोला - आपकी सारी बात ठीक है किन्तु मेरा संकल्प है‚ या तो आप मेरे साथ मित्रता करें अन्यथा आप के बिल के पास ही‚ अन्न-जल त्यागकर प्राण छोड़ दूँगा ।
कौवे की बात सुनकर हिरण्यक चूहा बोला- अच्छा ठीक है‚ मैं आपके साथ मित्रता करने को तैयार हूँ ।
इसके बाद वे दोनों परस्पर मित्र हो गये । दोनों ने साथ बैठकर सुस्वादु भोजन किया फिर सन्तुष्ट हो‚ एक दूसरे से विदा लेकर अपने-अपने स्थान को चले गये ।
इसी के साथ ही चूहे और कौवे में निरन्तर ही भोजनादि का आदान-प्रदान होने लगा और दोनों की मित्रता और प्रेम सुदृढ होता गया ।
एक दिन लघुपतनक कौवे ने हिरण्यक चूहे से कहा - हे मित्र ǃ अब तो इस जंगल में भोजन भी कठिनाई से मिलने लगा है इसीलिये हमें इस स्थान को छोड़कर कही अन्यत्र जाना चाहिये ।
हिरण्यक ने उसके प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा - मित्र अपने स्थान को यूँ ही नहीं छोड़ देना चाहिये ।
कहा भी है - दाँत‚ केश‚ नख और मनुष्य‚ ये चारों ही अपने स्थान से भ्रष्ट होने पर शोभा नहीं पाते । ऐसा विचारकर बुद्धिमान् मनुष्य को अपना स्थान नहीं छोड़ना चाहिये ।
स्थानभ्रष्टा न शोभन्ते दन्ताः‚ केशाः‚ नखाः‚ नराः ।
इति विज्ञाय मतिमान् स्वस्थानं न परित्यजेत् ।।
यह सुनकर कौवे ने विविध प्रकार से चूहे को समझा कर उसे अन्य स्थान पर जाने को मना लिया ।
चूहे ने पूछा - हमें कहाँ जाना चाहिये ॽ
कौवा बोला - मैने पहले से ही एक स्थान देख रखा है‚ जो बहुत ही रमणीय है । दण्डकारण्य में कर्पूरगौर नाम का एक तालाब है । वहाँ मेरा पुराना मित्र‚ स्वभाव से ही धार्मिक‚ मन्थर नामक कछुआ रहता है । हमें वहीं जाना चाहिये ।
इसके बाद दोनों मित्र उस तालाब की ओर चल पड़े । तालाब की ओर अपने मित्र लघुपतनक को आता देख मन्थर कछुवा बड़ा प्रसन्न हुआ । उसने लघुपतनक और हिरण्यक दोनों की बड़ी आवभगत की और कुशलक्षेम पूँछा ।
सबके परस्पर परिचय हो जाने पर वे सभी अपनी इच्छापूर्वक उस जंगल में तालाब के किनारे सुख से रहने लगे ।
एक दिन चित्रांग नामक मृह भागता हुआ आया । भागते हुए मृग को भयभीत देख कौवा आकाश में उड़कर भय का कारण देखने लगा । उसे कहीं भी भय का कोई कारण न दिखा । तब सभी मिलकर चित्रांग से पूछने लगे - भाई ǃ यहाँ भय का कोई कारण नहीं दिख रहा है‚ फिर तुम भयभीत होकर क्यूँ भागे ॽ
चित्रांग ने कहा- मैं बहेलिये के डर से आपकी शरण में आया हूँ‚ और आप लोगों से मित्रता करना चाहता हूँ ।
हिरन की बात सुनकर सभी ने उससे मित्रता का अनुमोदन करते हुए अपने साथ रहने की अनुमति दे दी । इसके बाद सभी ने विस्तार से उसके भय का कारण जानना चाहा ।
हिरन ने कारण बताते हुए कहा - कलिंग देश का राजा रुक्मांगद दिग्विजय के लिये निकला है और इस समय चन्द्रभागा नदी के तट पर अपनी सेना के साथ ठहरा हुआ है । कल सुबह वह सेना सहित कर्पूर सरोवर के पास ठहरेगा ये मैने उसके साथ के व्याधों के मुख से सुना है‚ यही मेरे डर का कारण है । अब आप लोगों को जो उचित लगे वो कीजिये ।
हिरन की बात सुन मन्थर कछुवा बोला - मुझे लगता है‚ हमें किसी अन्य तालाब की ओर चले जाना चाहिये ।
हिरण्यक चूहे ने हँसकर कहा - वो तो ठीक है किन्तु दूसरे तालाब की ओर जाते समय कौवा तो उड़कर चला जाएगा‚ मैं छिपकर शीघ्रता से चला जाऊँगा । हिरण भी तेज गति से दौड़ता चला जाएगा; किन्तु कछुवा रेंगते हुए जाएगा तो इसकी रक्षा का क्या उपाय है ॽ अतः मेरी राय यही है कि हम सभी को यहीं रहना चाहिये ।
हिरण्यक चूहे की हितकर बात सुनकर भी भय से व्याकुल कछुवा नहीं माना और अकेले ही दूसरे सरोवर की ओर चल दिया । उसको जाते देखकर हिरण्यक आदि सभी मित्र भी उसके पीछे चल दिये ।
रास्ते में जाते हुए मन्थर को जंगल में घूमते हुए एक व्याध ने देख लिया और उसे उठाकर अपने धनुष में बाँध लिया । वह भूख-प्यास से थका था इसीलिये कछुवे को पाकर अपने आप को धन्य मानकर घर की ओर चल दिया ।
अपने मित्र को व्याध के हाँथ पड़ा देखकर चूहे सहित सभी मित्र विलाप करने लगे और उसके पीछे-पीछे चलने लगे ।
चलते-चलते हिरण्यक चूहे ने कौवे और हिरण से कहा - जबतक यह व्याध जंगल से बाहर नहीं चला जाता तभी तक अपने मित्र को छुड़ाने का प्रयत्न करना चाहिये । एक बार यदि यह जंगल से निकल गया तो मित्र को छुड़ाने का सारा उपाय नष्ट हो जाएगा ।
कौवे और हिरन ने चूहे से अपने मित्र कछुवे को बचाने का उपाय पूछा । चूहा बोला - चित्रांग हिरन दाैड़कर जलाशय के पास जाये और वहाँ जलाशय के किनारे पेट फुलाकर लेट जाये । और लघुपतनक ǃ तुम चित्रांग के पेट पर बैठकर उसे चोंच मारना ।
जब व्याध तालाब में पानी पीने जाएगा तो वह मृग को मरा जानकर उसे पकड़ने अवश्य जाएगा । उसी समय मैं कछुवे को जाल काट करके मुक्त कर दूँगा । कछुवा जलाशय में चला जाएगा और मेरा इशारा पाते ही तुम दोनों भी वहाँ से भाग जाना ।
तब हिरण्यक के कहे अनुसार ही चित्रांग जाकर तालाब के किनारे लेट गया और कौवा उसके ऊपर बैठकर चोंच मारने लगा । सौभाग्य से जैसा हिरण्यक ने सोचा था‚ व्याध ने हिरण को मरा जानकर अपना थैला वहीं रखकर हिरन को बाँधकर ले जाने को चला ।
मौका पाते ही हिरण्यक ने कछुवे के बन्धन काट दिये और कछुवा तुरंत ही पानी में चला गया । इसके बाद हिरण्यक ने कौवे को संकेत कर दिया । संकेत पाकर कौवा आकाश में उड़ गया और उसके उड़ते ही हिरन उठकर भाग खड़ा हुआ ।
हिरन को भागा देखकर बहेलिया वापस अपने झाेले के पास आया पर अपने जाल को कटा देखकर और कछुवे को न पाकर अपने भाग्य को धिक्कारता हुआ चला गया ।
इस प्रकार परस्पर सूझबूझ से वे सभी मित्र उस महान् संकट से बच गये और सुखपूर्वक तालाब के किनारे मिलकर रहने लगे ।
हितोपदेश
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