चेतावनी : हितोपदेश की यह कथा बच्चों के पढने लायक नहीं है । कृपया इसे अवयस्क बच्चों के सामने न पढें न उन्हें पढने दें ।
कान्यकुब्ज देश में वीरसेन नाम का एक राजा था । उसने वीरपुर नामक नगर में तुंगबल नामक एक राजपुत्र को रक्षक अधिकारी बनाया । वह तुंगबल बहुत धनी‚ सुन्दर तथा युवा था ।
एक दिन अपने नगर में घूमते हुए उसने एक अत्यन्त सुन्दरी पूर्णयौवना लावण्यमती नाम की वणिग्वधू को देखा । उसे देखते ही राजकुमार उसपर कामासक्त हो गया । उसे पाने की अभिलाषा लिये हुए राजकुमार वापस अपने महल लौट आया और महल से उसने लावण्यवती के पास अपनी एक दूती को भेजा ।
वह लावण्यवती भी उस युवा राजकुमार के रूप को देखने का बाद से ही उसपर मोहित हो गयी थी । राजकुमार के द्वारा भेजी गयी दूती ने उसके पास पहुँचकर एकान्त में उससे राजकुमार के मन की बात कहते हुए उसका प्रणय प्रस्ताव रखा ।
दूती की बात सुनकर लावण्यवती बोली‚ मैं पतिव्रता हूँ अतः मैं इस पापकर्म में कैसे प्रवृत्त हो सकती हूँ । कहा भी गया है - वही सच्ची पत्नी है जो गुहकार्य में कुशल हो‚ सन्तान वली हो‚ अपने पति को ही अपना प्राण समझे और पतिव्रता हो ।
सा भार्या या गृहे दक्षा‚ सा भार्या या प्रजावती ।
सा भार्या या पतिप्राणा‚ सा भार्या या पतिव्रता ।।
इसीलिये मेरे पति मुझे जो आज्ञा देते हैं‚ उसे मैं विना बिचारे करने को तैयार रहती हूँ ।
लावण्यवती के इस वचन का भावार्थ (यदि मेरे पति मुझे भेजते हैं तो मैं तैयार हूँ) को समझकर दूती ने कहा - क्या यह सच है ॽ
लावण्यवती ने कहा - यह बिलकुल सच है ।
इतना सुनकर दूती ने वापस जाकर तुंगबल से लावण्यवती की पातिव्रत्य सम्बन्धी (पति की आज्ञा बिना यह काम सम्भव नहीं आदि) सारी बात कह सुनाई । दूती की बातों को सुनकर तुंगबल बोला - मैं अत्यन्त कामपीडित हो रहा हूँ । मैं उसके बिना जी नहीं पाऊँगा ।
तब कुट्टिनी (दूती) बोली - राजकुमार ǃ व्यथित न हो । उसका पति उसे लाकर आपको स्वयं समर्पित करेगा ।
राजकुमार ने आश्चर्य से पूछा - यह कैसे सम्भव हो सकता है ॽ
दूती ने कहा - उपाय करने से कुछ भी सम्भव हो सकता है । मैं जैसा कहती हूँ आप वैसा ही कीजिये ।
इसके बाद दूती ने राजकुमार को सारा उपाय कह सुनाया । तब राजपुत्र ने दूती के कहने से चारुदत्त नामक वणिक्पुत्र (लावण्यवती जिसकी पत्नी थी) को अपने यहाँ नौकर नियुक्त कर लिया । धीरे-धीरे राजकुमार ने चारुदत्त को अपने सभी विश्वस्त कार्यों में लगाकर उसे अपना विश्वासपात्र बना लिया ।
एक दिन दूती के कहने से राजकुमार ने स्नान करके‚ चन्दन लगा कर‚ सोने के वस्त्राभूषण धारण करके चारुदत्त से कहा - हे चारुदत्त ǃ आज से मैं एक माह तक श्रीगौरी जी का व्रत करुँगा । इस लिये आज से तुम प्रत्येक रात्रि में एक कुलीन सुन्दर युवती स्त्री को लाकर मुझे दिया करो‚ मैं विधिपूर्वक उसका यथोचित सत्कार करके पूजा किया करूँगा ।
तत्पश्चात् चारुदत्त प्रतिदिन ही एक सुन्दरी युवती को लाकर उसे देता तथा छिपकर देखता कि वह क्या करता है । राजकुमार तुंगबल भी उस युवती को बिना छुए हुए‚ अलग से ही वस्त्र-आभूषण‚ गन्ध‚ चन्दन आदि से उसकी पूजा करके उसी समय सिपाहियों के साथ उसके घर वापस भेज देता था ।
यह देखकर चारुदत्त को पूरी तरह विश्वास हो गया और वह लोभ से आकृष्ट हो गया । उसने सोचा कि इतना सारा धन-वस्त्रादि उसकी प्राणप्रिया को भी प्राप्त हो सकता है । ऐसा सोचकर एक दिन उसने स्वयं ही लाकर अपनी पत्नी लावण्यवती को राजकुमार को साैंप दिया ।
अपनी प्राणप्रिया लावण्यवती को अपने सामने देखकर तुंगबल ने उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया । उसका गाढ़ आलिंगन किया और उसको अपने शयनकक्ष में ले जाकर‚ उसके अंगों का मर्दन करते हुए कामक्रीड़ा करने लगा ।
यह सब देखकर वह वणिक्पुत्र चारुदत्त किंकर्तव्यविमूढ होकर पश्चात्ताप करने लगा ।
हितोपदेश
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