Ticker

6/recent/ticker-posts

दुर्दान्त शेर और बूढे खरगोश की कथा ।

मदोन्मत्तसिंहशशककथा

मन्दराचल पर दुर्दान्त नाम का सिंह रहता था । वह पशुओं का निरर्थक ही वध करता रहता था । एक दिन सब पशुओं ने मिल कर उस सिंह से जाकर कहा - हे मृगेन्द्र ǃ आप एक समय में ही बहुत से पशुओं को क्यों मारते हैं ॽ यदि आप प्रसन्न हों तो हम लोग ही आपके भोजन के लिये स्वेच्छा से प्रतिदिन एक-एक पशु आपको भेज दिया करें ।


यह सुनकर सिंह बोला - तुम लोगों की यही इच्छा है तो ऐसा ही हो । पर ध्यान रहे‚ इस वादे को कभी भूलना नहीं ।

तब से उसके पास प्रतिदिन एक-एक पशु आने लगा और वह भी पास में आये हुए एक ही पशु को खाकर मजे से दिन बिताने लगा । अब उसे शिकार करने का व्यर्थ परिश्रम नहीं करना पड़ता था ।

एक दिन सिंह के पास जाने के बारी एक बूढे खरगोश की थी । तब वह मन में विचार करने लगा - अपना जीवन बचाने के लिये ही तो किसी से विनती की जाती है‚ किन्तु यदि मुझे मरना ही है तो मुझे सिंह की विनती से भी क्या लाभ ǃ इसीलिये मैं तो धीरे-धीरे जाऊँगा । जल्दी क्या है ǃ

इस तरह वह खरगोश धीरे-धीरे चलते हुए सिंह के पास बहुत देर करके पहुँचा । खरगोश को देर से आता देख भूखा सिंह क्रोध में बोला- अरे दुष्ट ǃ तू इतनी देर से क्यूँ आया ॽ

खरगोश बोला - हे प्रभो ǃ इसमें मेरा कोई अपराध नहीं है । मैं तो जल्दी ही आ रहा था पर रास्ते में आते हुए मुझे एक दूसरे सिंह ने जबरदस्ती पकड़ लिया था । बड़ी कठिनाई से‚ वापस आने की शपथ लेने पर ही उसने मुझे यहाँ आने दिया ।

यह सुनकर सिंह क्रोध में भरकर बोला - शीघ्र चल‚ उस दुष्ट को मुझे दिखा‚ वह कहाँ रहता है ॽ आज तुझे छोड़कर उसे ही मारकर खाऊँगा ।

तब खरगोश उसे एक गहरे कुएँ के पास ले गया । कुएँ के पास पहुँचकर खरगोश ने कहा - महाराज ǃ वो इसी कुएँ में रहता है । आप स्वयं कुएँ में झाँककर उसे देख सकते हैं ।

तब शेर ने कुएँ के अन्दर झाँककर देखा । उसे पानी में अपनी ही छाया दिखाई दी‚ जिसे वो दूसरा शेर समझ बैठा । अपनी परछाई देखकर वह गुस्से में दहाड़ा । उसके दहाड़ने की प्रतिध्वनि कुएँ से वापस सुनाई दी जिससे वह और भी क्रोधित हो गया और कुएँ के सिंह को मारने के लिये कुएँ में कूद गया और उसी में डूबकर मर गया ।

इस तरह से बूढे खरगोश ने अपनी बुद्धि की चतुराई से अपनी और जंगल के बाकी सभी जानवरों की भी जान बचा ली ।

हितोपदेश


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ