कल्याणकटक नामक स्थान में भैरव नाम का एक बहेलिया रहता था । एक दिन वह शिकार के लिये हाथ में धनुष लेकर विध्याचल के जंगल में गया । वहाँ उसने एक मोटे से हिरन को मारा और उसे लेकर वापस आने लगा । चलते-चलते रास्ते में उसे एक भयंकर सुअर दिखाई दिया । तब उसने हिरन को भूमि पर रखकर सूअर को बाण मारा ।
बाण सुअर के मर्मस्थल पर जा लगा । इससे पहले कि सुअर गिरकर मरता उसने शिकारी पर हमला कर दिया और उसके अंडकोश में अपने दोनों दाँतों से जोर का प्रहार कर दिया । उस विकट प्रहार से बहेलिये के प्राण-पखेरू उड़ गये और वह कटे हुए पेड़ की भाँति वहीं गिर गया । जब बहेलिया गिरा तो उसके शरीर के नीचे एक बड़ा भयंकर साँप भी दबकर मर गया ।
कुछ देर बात वहाँ जंगल में दीर्घराव नामक एक सियार भोजन की खोज करता हुआ आ पहुँचा । वह उन मरे हुए बहेलिये‚ सुअर‚ हिरन और साँप को देखकर मन ही मन बड़ा प्रसन्न हुआ और कहने लगा कि आज तो विधाता ने मुझे खूब भोजन दे दिया है ।
इसके बाद सियार ने आकलन किया कि इतने मांस से कम से कम तीन महिने तक मेरा गुजारा चल जाएगा‚ क्योंकि एक महीने तक तो मेरा गुजारा इस मनुष्य के माँस से हो जाएगा‚ दो महीने के लिये ये सुअर और हिरन पर्याप्त रहेंगे‚ एक दिन यह साँप चलेगा और आज के लिये तो धनुष की ताँत ही मेरी भूख शान्त कर देगी ।
अतः आज पहिले कलेवा में भूख शान्त करने के लिये धनेष के इस स्वादरहित ताँत को ही खा लेता हूँ‚ बाकी तीन महीने मौज से खूब सारा माँस खाऊँगा । ऐसा सोचकर उसने धनुष पर चढी हुई डोरी (ताँत) को खाने के लिये काटा । ताँत के टूटने पर धनुष उछला और सीधे उस सियार के हृदय में जा लगा । उस आघात से तुरंत ही दीर्घराव सियार वहीं गिरकर मर गया ।
इसीलिये कहा गया है - नित्य ही कुछ संचय करना अवश्य चाहिये‚ पर अधिक संचय भी नहीं करना चाहिये ।
कर्तव्यः संचयो नित्यं‚ कर्तव्यो नाSतिसंचयः
हितोपदेश
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