आज जो कहानी सुनाने जा रहा हूँ इसके बारे में आप बचपन से ही परिचित होंगे । बस आपको यह नहीं पता होगा कि यह कहानी पंचतन्त्र की है जिसे आचार्य विष्णुशर्मा ने लिखा था । तो आइये प्रारम्भ करते हैं – गोदावरी नदी के किनारे सेमल का एक विशाल वृक्ष था‚ उस वृक्ष पर विभिन्न प्रकार के पक्षी रहा करते थे । एक दिन लघुपतनक नामक एक व्याध जाल लेकर वहाँ आया । उसने पृथ्वी पर चावल बिखेर कर उनके ऊपर जाल बिछा दिया । उस समय चित्रग्रीव नामक कबूतरों का राजा अपने परिवारजनों तथा अन्य मित्र कबूतरों के साथ आकाश में उड़ रहा था । उसने सभी कबूतरों को चावल के टुकड़े दिखाते हुये कहा कि इसमें अवश्य ही कोई धोखा है‚ अतः हमें इन चावल के दानों को खाने का लोभ नहीं करना चाहिये; परन्तु उसके साथी कबूतरों ने उसकी बात नहीं मानी । सभी कबूतर दाना खाने नीचे उतर गये; फलस्वरूप वे सभी जाल में फँस गये । अब वे सब अपने मुखिया की बात न मानने का पछतावा करने लगे । उन्हें आपत्ति में फँसा देखकर चित्रग्रीव ने कहा - तुमलोग धैर्य न छोड़ो और एकसाथ ही जाल को लेकर उड़ चलो; गण्डकी नदी के किनारे चित्रवन में मेरा मित्र हिरण्य नामक चूहों का राजा रहता है‚ वह ...
गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे । स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्तु भूय: पुरुषा: सुरत्वात् ।।